Corporate Donations:
भारत में राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा काफी लंबे समय से विवाद का विषय है. विपक्ष आरोप लगाता है कि बीजेपी कार्पोरेट प्रेमी पार्टी है. वहीं कुछ आंकड़े ऐसे भी हैं जिससे विपक्ष का ये आरोप सही भी होता है. इन्हीं में से एक है बीजेपी को मिलने वाला चंदा, खासकर कार्पोरेट चंदा. वित्तीय वर्ष 2022-23 में सभी राजनीतिक पार्टियों को मिले कुल कार्पोरेट चंदे का लगभग 90 प्रतिशत केवल बीजेपी को मिला है.
एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की एक रिपोर्ट ने कार्पोरेट चंदे चंदे का खुलासा किया है. एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार, अन्य सभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को संयुक्त रूप से कुल 70 करोड़ का कार्पोरेट डोनेशन (Corporate Donations) मिला जबकि केवल बीजेपी को अकेले 610.491 करोड़ रुपये मिले.
एडीआर की कार्पोरेट डोनेशन रिपोर्ट की खास बातें
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एडीआर की रिपोर्ट कहती है कि 2022-23 में सभी राष्ट्रीय दलों द्वारा घोषित कुल 850.438 करोड़ के डोनेशन में से 719.858 करोड़ रुपये अकेले भाजपा को गए थे.
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रिपोर्ट में कहा गया है कि भाजपा द्वारा घोषित कुल चंदा कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) द्वारा इस प्राप्त किए गए कुल चंदे से 5 गुना ज्यादा है.
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एडीआर की रिपोर्ट वित्तीय वर्ष 2022-23 के दौरान राष्ट्रीय राजनीतिक दलों द्वारा प्राप्त 20 हजार रुपये से अधिक के दान पर आधारित है, जिससे संबंधित विस्तृत दस्तावेज पार्टियों ने चुनाव आयोग में प्रस्तुत किया है.
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चुनाव आयोग में पेश की गई रिपोर्ट के मुताबिक कांग्रेस ने 79.92 करोड़ रुपये का चंदा मिलने की घोषणा की है, जबकि आप ने 37 करोड़, एनपीपी ने 7.4 करोड़, माकपा ने 6 करोड़ रुपये जबकि बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 20 हजार रुपये से अधिक का चंदा नहीं मिलने की घोषणा की है.
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2022-23 के दौरान राष्ट्रीय दलों को मिले कुल डोनेशन 91.701 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई, जो कि पिछले वित्तीय वर्ष 2021-22 की तुलना में 12.09% अधिक है.
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भाजपा को दान 2021-22 के दौरान 614.626 करोड़ रुपये से बढ़कर वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान 719.858 करोड़ रुपये हो गया. दूसरी ओर, कांग्रेस का चंदा 2021-22 के 95.459 करोड़ रुपये से घटकर 2022-23 के दौरान 79.924 करोड़ रुपये हो गया.
राजनीतिक पार्टियों को दान देने वालों में दिल्ली, गुजरात और महाराष्ट्र तीन प्रमुख राज्य हैं. दिल्ली ने 276.202 करोड़, गुजरात ने 160.509 करोड़ और महाराष्ट्र ने 96.273 करोड़ का चंदा दिया गया. राजनीतिक दलों को मिले चंदे में कॉर्पोरेट और व्यावसायिक क्षेत्र का योगदान सबसे ज्यादा है. इस वित्तीय वर्ष के दौरान कार्पोरेट चंदा 680.495 करोड़ रुपये था जो कि 80.017 प्रतिशत के बराबर है.
चुनावी बॉन्ड असंवैधानिक (Electoral Bond Unconstitutional)
चुनावी बॉन्ड योजना शुरुआत से ही विवाद का विषय रही. राजनीतिक दलों की फंडिंग में पारदर्शिता की कमी इसका प्रमुख कारण रहा. सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 2023 में चुनावी बॉन्ड योजना की संवैधानिक वैधता पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
अदालत ने 15 फरवरी को अपने फैसले में इस योजना को रद्द करते हुए इसे असंवैधानिक घोषित करार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अनाम चुनावी बॉन्ड सूचना के अधिकार और अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन है.
महत्वपूर्ण बात यह है कि कोर्ट ने चुनाव आयोग से भारतीय स्टेट बैंक द्वारा प्राप्त चुनावी बॉन्ड के माध्यम से दान का विवरण पेश करने को कहा है. संभव है कि इसमें दान देने वालों और राजनीतिक दलों का भी नाम शामिल होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को 13 मार्च, 2024 तक इन विवरणों को वेबसाइट पर प्रकाशित करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने यह भी आदेश दिया कि चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद होना चाहिए.
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