Bharat Ratna for Karpoori Thakur:
जननायक कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) की 100वीं जयंती पर उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित करने का ऐलान हुआ है. कर्पूरी ठाकुर बिहार की राजनीति की जान हैं. जननायक हैं. चुनावी साल में उन्हें भारत रत्न देने का फैसला बहुत बड़ा है. देश की सियासत में अब ये बात आम हो गई है कि सौ विपक्ष की, एक मोदी की. विपक्ष लाख रणनीति बनाए लेकिन आखिरी वक्त में मोदी का मास्टर स्ट्रोक उन्हें चारो खाने चित कर देता है. मंडल के आगे बेबस रही बीजेपी ने कभी कमंडल की राह पकड़ी थी. देश में मंडल विपक्ष का और कमंडल बीजेपी का हथियार हुआ करता था.
मोदी पहले ऐसे नेता हैं जो कमंडल के साथ मंडल का भी खेल खेल रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का फैसला भी मोदी के इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है. 1990 के बाद की सियासत इसी मंडल और कमंडल के बीच फंसी है. बीजेपी ने अब कर्पूरी ठाकुर के बहाने बिहार में नया बवाल कर दिया है.
मंडल-कमंडल क्या है- Mandal Versus Kamandal ?
मंडल और कमंडल को आसान तरीके से ऐसे समझ लीजिए…कि मंडल यानि आरक्षण की राजनीति और कमंडल यानि धर्मिक आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण. अगस्त 1990 में वीपी सिंह ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट लागू करके ओबीसी को सरकारी नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा कर दी. आरक्षण का ये फैसला बीजेपी के लिए गले की फांस बन गया. मंडल की काट में धार्मिक धुर्वीकरण के मकसद से लाल कृष्ण आडवाणी ने अगले महीने यानि सितंबर 1990 में अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सोमनाथ से अयोध्या की रथ यात्रा निकाली.
Who is Karpoori Thakur. कर्पूरी ठाकुर कौन हैं?
24 जनवरी 1924 को जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी और बाद में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य रहे. कर्पूरी ठाकुर बिहार की अतिपिछड़ा नाई जाति से आते हैं. उनका जन्म बिहार में सबसे पहले अति पिछड़ों को आरक्षण देने का ऐलान कर्पूरी ठाकुर ने किया था. ‘जन नायक’ के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर दिसंबर 1970 से जून 1971 और दिसंबर 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे.
कर्पूरी ठाकुर ने भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान एक युवा छात्र के रूप में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की. इस दौरान उन्हें कई महीने जेल में बिताने पड़े. हालांकि शुरुआत में उन्होंने एक गांव के स्कूल में शिक्षक की नौकरी की, लेकिन उनकी हमेशा से ही राजनीति में रुचि रही थी. उन्होंने 1952 में हुए पहले राज्य विधानसभा चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में ताजपुर निर्वाचन क्षेत्र से विजय हासिल की. ये जीत इसलिए बड़ी थी क्योंकि उस समय कांग्रेस का एकछत्र राज था.
कर्पूरी ठाकुर की जाति- Karpoori Thakur Caste:
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 1924 में बिहार के समस्तीपुर जिले के गांव पितौंझिया में हुआ. कर्पूरी ठाकुर बिहार के अति पिछड़े वर्ग और नाई जाति से आते हैं. वह एक ऐसे नेता थे जिनकी राजनीतिक यात्रा समाज के वंचित वर्गों के प्रति समर्पित थी. कर्पूरी ठाकुर 1967 में महामाया प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में बनी बिहार की पहली गैर कांग्रेसी सरकार में बिहार के पहले उपमुख्यमंत्री बने. कर्पूरी ठाकुर के पास शिक्षा विभाग भी था. शिक्षा मंत्री के तौर पर उन्होंने बिहार के स्कूलों में अंग्रेजी को अनिवार्य विषय को रूप में हटा दिया. कर्पूरी ठाकुर 1952 के पहले चुनाव से लेकर 1988 में अपनी मौत तक कभी चुनाव नहीं हारे.
कर्पूरी ठाकुर फार्मूला- Karpoori Thakur Formula:
कर्पूरी ठाकुर की सबसे महत्वपूर्ण और स्थायी विरासतों में से एक सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अन्य पिछड़ा वर्ग के अंदर अति पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण लागू करने का उनका ऐतिहासिक निर्णय है. कर्पूरी ठाकुर ने 1978 में पिछड़ी जातियों या ओबीसी के लिए बड़े कोटा के भीतर राज्य में सबसे पिछड़ी जातियों (MBC) के लिए आरक्षण की शुरुआत की. इसे कर्पूरी ठाकुर फॉर्मूला कहा जाता है.
कर्पूरी ठाकुर बिहार में महत्वपूर्ण क्यों हैं- Why Karpoori Thakur is Important in Bihar
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के फैसले ने बिहार ने नया सियासी घमासान शुरू कर दिया है. बिहार में 1990 के बाद से लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार की राजनीति पिछड़े और अतिपिछड़े जनाधार पर आधारित है. पिछड़ों यानि मंडल की राजनीति करने वाले लालू और अतिपिछड़ों के बड़े नेता नीतीश कुमार के लिए जबरदस्त चुनौती खड़ी कर दी है. यानि मोदी..लालू और नीतीश का खेल उन्हीं के नियम से खेल रहे हैं. बिहार में 36 प्रतिशत से ज्यादा आबादी अति पिछड़ा वर्ग की है. फिलहाल अति पिछड़े वोट पर नीतीश कुमार का प्रभाव है.
बिहार में अति पिछड़ी आबादी कितनी है (EBCs in Bihar)
2022 बिहार जाति-आधारित सर्वेक्षण के अनुसार, बिहार में 36 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ईबीसी (EBCs in Bihar) यानि अति पिछड़ा और 27 फीसदी से ज्यादा ओबीसी हैं. इसलिए आप समझ सकते हैं कि कर्पूरी ठाकुर की बिहार में क्या बिसात है. प्रधानमंत्री मोदी ने कैसे दो दिनों के अंदर कमंडल और मंडल की राजनीति करके अपने विरोधियों को बेचैन कर दिया है. 22 जनवरी को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के जरिए कमंडल यानी अगड़ी जातियों को साधने की रणनीति के तौर पर देख जा रहा है. वहीं कर्पूरी ठाकुर के जरिए अति पिछड़ा वर्ग यानि मंडल.
क्या है मोदी का मास्टर स्ट्रोक?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न से सम्मानित करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. माना जा रहा है कि बीजेपी कर्पूरी ठाकुर के सहारे बिहार की पिछड़ा और अति पिछड़ा समुदाय में सेंध लगाना चाहती है, जिस पर अभी लालू यादव और नीतीश कुमार का कब्जा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की थी. इस आयोजन के अगले ही दिन कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिए जाने का ऐलान हो गया. 48 घंटे के अंदर पहले कमंडल और फिर मंडल के दांव से ये चर्चा शुरू हो गई है कि पीएम मोदी ने बिहार की राजनीति में बड़ा खेल कर दिया है.
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